काश कोई हमारे लिए होती
जो कुछ सहमी होती
जिसकी सांसो में गर्माहट होती
जिसकी पलके झुकी होती
जो हलके से मुस्कुराती फिर शर्माती
और वरमाला लेकर आती
मै उसके नैनो से घायल होता
उसमे ऐसी अदा होती
काश कोई हमारे लिए होती
जो कुछ सहमी होती
जिसकी सांसो में गर्माहट होती
जिसकी पलके झुकी होती
जो हलके से मुस्कुराती फिर शर्माती
और वरमाला लेकर आती
मै उसके नैनो से घायल होता
उसमे ऐसी अदा होती
काश कोई हमारे लिए होती
pareshan mat ho tumare liye bhi kahin na kahin koi to hogi sabr ka phal meetha hota hai
ReplyDeleteक्या लिख रहे हो क्यों लिख रहे हो मेरे भाई अब तो बड़े बन जाओ
ReplyDeletebe serious सोचो ये कविता है या जो कुछ भी है इसे कोई क्यों पढ़ेगा कुछ कनेक्सन जोड़ो टब तो पाठक पढ़ेगा मुझे लगता है लेकिन तुमने लिखने की कोशिस की इसके लिए आभार
और लिखो पर थोडा सोच कर
archit ji aakhir me vi bhi china mobile ki tarah fat jati!!
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