कितने हँसी थे वो बचपन के दिन
वो रोज-रोज की शरारते और उसकी डांट
फिर रूठ कर बैठ जाना और माँ का मानना
बारिश की बूंदों के संग खेलना फिर नाव बनाना
दादी और नानी की कहानिया सुनना और सो जाना
स्कूल में फर्स्ट आना और गिफ्ट लाना
हर सर्दी अपना कोट बगल वाले दोस्त को दे देना
वो सर्दी में गर्मी का एहसास
वो सर्दी में गर्मी का लिबाज
वो दोस्तों संग रोज का हंसना
वही टीचर के हाथो रोज की पिटाई
वो लंच में दूसरो के खाने का मजा
वो छुट्टी में भारी बैग की सजा
वो शरारत से भरे दिन
वो कोचिंग टीचर के डर से भरी शाम
फिर रात में माँ के हाँथ की बनी रोटी
नींद न आने पर वो माँ की लोरी
कितने हँसी ते वो बचपन के दिन
कितने हँसी थे वो बचपन के दिन .........................
हा हसीं तो थे पर आने वाली जिंदगी को बेहतर बनाने का क्या काम कर सकते हैं अब ये सोचने और करने का वक्त है
ReplyDeletevery well!!!!! humare bhi post read kerke comment ker dijiye..............
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