Friday, March 18, 2011

होली हुड्दंग और शराब

     होली के दिन दिल खिल जाते है
     रंगों में रंग मिल जाते है
     गिले शिकवे भूल के दोस्तों 
     दुश्मन  भी गले मिल जाते है 


ये लाइने शायद होली और उसके शबाब को बयां करने के लिए माकूल है जब शोले में जावेद अख्तर ने ये  लाइने लिखी और किशोर  कुमार के इसे आवाज दी  तो होली के मायने ही बदल गए और लोग झूमने पर मजबूर हो गए 
होली रंगों,मस्ती और खुशहाली से भरा त्यौहार है लोग सब कुछ भूल कर एक ही रंग में रंग जाते है 
                             लेकिन शायद इस होली को किसी की नजर लग गई है अब ये रंगों और मस्ती का नहीं बल्कि हुड्दंग का त्यौहार बन गया है जो असली होली का मजा है वो फीका पड़ता जा रहा है होली के दिन आपको अक्सर ही शराब पीकर  लुढ़कते लोग दिख जायेगे देश में हुए सर्वे के अनुसार हर साल होली में हजारो लोग अपनी जान गवाते है देश के सभी अस्पतालों में हाए अलर्ट रहता है इसमें ज्यादातर दुर्घटनाये शराब पीकर गाड़ी चलने वालो की है लेकिन क्यों इस खुसी और रंगों के त्योहार में कुछ घरो का चिराग बुझ जाता है क्यों रंग के त्यौहार में भंग इतना मिल जाता है कि मातम और चीख की आवाज आम हो जाती है 

होली के दिन तो ऐसा लगता है जैसे देश के सारे शराबियो ने हरिवंश राये  बच्चन जी की मधुशाला पढ़ ली है  और  उनकी ये लाइने उनके मन में घर कर गई है 
एक बरस में एक बार ही ,जलती होली की ज्वाला 
दुनियावालो किन्तु किसी दिन,आ मदिरालय में देखो 
दिन को होली रात दिवाली,रोज मानती मधुशाला 
उस दिन तो ऐसा लगता है जैसे देश के शराबी पूरा मदिरालय ही पी जायेंगे  और सरकार को शराब से होने वाले रेवेन्यू को एक दिन में ही पूरा कर देंगे वो शराब के नशे में इतना डूब जाते है की बाकि सब उन्हें पराया लगता है और यही गुनगुनाते है कि------------
                       आज फिर से पी है शराब 
                       दिल को समझाने के लिए 
                       दिल पर मरहम लगाने के लिए
                       उसकी यादो में डूब जाने के लिए
                       सोचा था  उसके साथ ही जलाऊंगा होली की ज्वाला   
                       पर उस प्रियतमा ने तोडा है मेरा दिल
                      इसीलिए एक नई संगनी बनाई है
                      और बोतल के साथ होली में उसकी याद जलाई है   
                      
                     


3 comments:

  1. bahut sahi kaha aapne. holi ab rangon ka tyohar na hokar hurdung ka tyohar ban gaya hai..........

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  2. archit likha to tumne accha hai but last ki 5 6 lines ne ise typical archit style bana diya! good

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